यदि किसी व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो उन्हें गौतम बुद्ध की जीवन कथा और कथाएं अवश्य पढ़नी चाहिए। वह एक ऐसे महान पुरुष हैं जिन्होंने जीवन का ऐसा अप्रतिम ज्ञान प्राप्त किया जो मानवता की भलाई के लिए सर्वोत्तम है। बच्चों को उनकी कहानियां अवश्य पढ़नी चाहिए ताकि कम उम्र में ही उनकी तार्किक क्षमता (समझ शक्ति)और बौद्धिक स्तर का विकास हो सके।
आज आपको गौतम बुद्ध की कुछ ऐसी कहानियां पढ़ने को मिलेंगी जो जीवन नैतिक शिक्षा से परिपूर्ण हैं। इन कहानियों को पढ़ें और अपने प्रिय मित्रों के साथ भी साझा करें।
1. गौतम बुद्ध और शिकारी (Gautam Budh ki kahani)
एक समय की बात है, महात्मा बुद्ध अपनी गहन तपस्या में लीन थे, उन्हें ध्यानमग्न हुए कई दिन बीत चुके थे। तभी एक शिकारी उसी रास्ते से गुज़र रहा था। शिकारी ने महात्मा बुद्ध को पहचान लिया। उसने बुद्ध की महानता के किस्से सुने थे, किंतु वह उनकी प्रशंसा से संतुष्ट नहीं था। उसने उनकी परीक्षा लेने की सोची ।
शिकारी ने पहले महात्मा बुद्ध पर एक छोटा पत्थर फेंका। महात्मा बुद्ध ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, क्योंकि उनका मानना था कि शरीर को तकलीफ होती है, आत्मा को नहीं। पत्थर से शरीर को कष्ट हुआ, किंतु आत्मा अप्रभावित रही। शिकारी कुछ समय प्रतीक्षा करता रहा, परंतु बुद्ध ने अपनी ध्यानावस्था नहीं छोड़ी और न ही कोई प्रतिक्रिया दी।
पुनः शिकारी ने एक और पत्थर फेंका, जो महात्मा बुद्ध की आंख पर जा लगा और वहां से खून बहने लगा। बुद्ध को खून बहने का आभास हुआ, किंतु वे अपनी तपस्या से नहीं उठे। शिकारी क्रोधित हुआ और उसने एक और पत्थर फेंका। इस बार महात्मा बुद्ध के शरीर से अधिक खून बहने लगा और उनकी आंखों से आंसू निकल आए।
शिकारी ने बुद्ध के पास जाकर पूछा, “जब मैंने पत्थर मारा, तो आपने कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी?”
महात्मा बुद्ध ने सरलता से कहा, “क्योंकि इससे मेरे शरीर को कष्ट हुआ, पर मेरे मन-मस्तिष्क को नहीं।” शिकारी अचंभित रह गया और पूछा, “फिर आपके आंखों से आंसू क्यों बह रहे हैं?”
इस पर महात्मा बुद्ध ने उत्तर दिया, “तुम्हारे अनुचित कर्म के परिणाम के बारे में सोचकर मेरी आत्मा रो रही है। तुमने इतना बड़ा पाप किया है, तुम्हें कैसी सजा मिलेगी।”
बुद्ध की बातों को सुनकर शिकारी उनके चरणों में नतमस्तक हुआ और क्षमा याचना की। महात्मा बुद्ध क्षमाशील व्यक्ति थे, उन्होंने तुरंत शिकारी को क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया।
उस दिन के बाद वह शिकारी महात्मा बुद्ध का आशीर्वाद पाकर एक महान व्यक्ति और साधक के रूप में जीवन व्यतीत करने लगा।
2. ज्ञान से हुई मोक्ष की प्राप्ति – गौतम बुद्ध की कहानी (Gautam Budh ki kahani)
एक दिन महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ कुटिया में बैठे हुए थे और ज्ञान चर्चा का विषय आरंभ हुआ। शिष्यों के आग्रह पर उन्होंने एक कहानी सुनानी शुरू की –
समीर नाम का एक जल्लाद मगध राजमहल के पीछे बसे एक कस्बे में रहता था। वह मगध साम्राज्य का प्रमुख जल्लाद था और उसका सारा जीवन दोषियों को फांसी देने में बीत गया था। अब वह लगभग 60 वर्ष का हो चुका था और राजकीय सेवा से मुक्त होकर अपने अंतिम जीवन को अपने घर में व्यतीत कर रहा था। समीर अपने जीवन की घटनाओं को याद करता और पश्चाताप में डूबा रहता।
“मेरे हाथों इतने जीवों की हत्या हुई!” यही बातों सोचते हुए वह नहा – धोकर तैयार हुआ। जैसे ही वह खाना-खाने बैठा, दरवाजे पर से आवाज आई। समीर जब बाहर निकलकर देखता है तो एक भिक्षुक दरवाजे पर खड़ा है। भिक्षुक तपस्या से उठा हुआ जान पड़ता था और भूख से व्याकुल था। समीर ने तुरंत ही अपना भोजन, जो उसने स्वयं के लिए बनाया था, उस भिक्षुक को दे दिया कर दिया।
भिक्षुक की भूख शांत हुई और वह प्रसन्न हो गया। भोजन करने पश्चात भिक्षुक और समीर दोनों बैठे थे। समीर ने अपने जीवन में किए गए कर्मों को भिक्षुक के सामने प्रकट किया। उसने बताया कि वह राजकीय सेवा के दौरान कई कैदियों और अपराधियों को मृत्यु दंड दे चुका है, जिसके कारण उसे अपने आप पर अपराध बोध होता है और वह हमेशा ग्लानि में डूबा रहता है। भिक्षुक शांत मन से समीर की बातें सुनता रहा और मुस्कुराता रहा ।
समीर ने अपने जीवन की सभी घटनाओं को भिक्षुक के सामने रख दिया। जब समीर की बातें खत्म हुईं, तो भिक्षुक ने उसे दोनों हाथों से उठाया और हृदय से लगा लिया। उन्होंने कहा, “वत्स, तुमने यह सब अपने मन से किया या किसी के आदेश पर?”
समीर ने उत्तर दिया, “यह सब मैंने राजा के आदेश पर किया।”
भिक्षुक ने कहा, “तो फिर तुम दोषी कैसे हुए? तुमने तो अपने स्वामी के आदेशों का पालन किया है।” ऐसा कहते हुए भिक्षुक ने समीर को धम्म के उपदेश सुनाए। समीर को अपने कर्मों की सच्चाई का अहसास हुआ और उसने अपने पापों से मुक्ति पाने का मार्ग पाया।
3. पुष्प के बदले शरण – महात्मा बुद्ध की कहानी (Mahatma Budh ki kahani)
एक वक्त की बात है महात्मा गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मगध क्षेत्र पहुचे थे। वहां एक चंदौसा नाम का मोची गांव के बाहर अपनी एक कुटिया बनाकर रहता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी और चार बच्चे रहते थे। चंदौसा की कुटिया के बाहर एक बड़ा सा तालाब भी था, जिसमें बरसात का पानी जमा होता था।
एक दिन सुबह, चंदौसा ने तालाब पर एक दिव्य कमल का पुष्प देखा। उसने अपनी पत्नी फुलौरी को उस पुष्प के बारे में बताया। फुलौरी ने बताया कि महात्मा बुद्ध यहां पर आए हुए हैं और शायद वे इस तालाब के पास से गुजरे होंगे, जिससे यह पुष्प खिला उठा है। चंदौसा के मन में अमीर बनने का स्वप्न जागृत हुआ। वह जल्दी से तालाब में कूदकर छलांग लगाया और पुष्प को तोड़कर ले आया। उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह इसे राजा को देकर ढेर सारा धन प्राप्त करेगा और वे आराम से जीवन व्यतीत करेंगे।
फुलौरी ने भी अपनी सहमति दी और चंदौसा राज महल की ओर निकल पड़ा। रास्ते में एक व्यापारी ने चंदौसा को देखा और पुष्प का मूल्य पूछने लगा। व्यापारी ने दो स्वर्ण मुद्रा देने की पेशकश की, लेकिन चंदौसा ने सोचा कि राजा इससे भी अधिक मूल्य देंगे। व्यापारी को मना कर वह राजमहल की ओर दौड़ पड़ा।
राह में राजा रत्नेश मिले। चंदौसा ने पुष्प दिखाया और राजा ने पांच स्वर्ण मुद्रा देने की पेशकश की। चंदौसा सोच में पड़ गया कि इस पुष्प में ऐसी क्या खास बात है जो व्यापारी और राजा इसे पाना चाहते हैं। वह महात्मा बुद्ध के शरण में पहुंच गया।
महात्मा बुद्ध के चरणों में गिरकर उसने पुष्प उन्हें समर्पित किया और शरण में संरक्षण मांगा। महात्मा बुद्ध ने उसे हृदय से लगा लिया और शरण दी। चंदौसा को ज्ञान प्राप्त हुआ और वह समाज में ज्ञान के माध्यम से पीड़ा हरने का प्रयत्न करने लगा। वह आजीवन महात्मा बुद्ध का शिष्य बन गया।
समापन
गौतम बुद्ध ने समाज की उन्नति और अध्यात्म की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए जीवन के परम उद्देश्य को समाज के बीच साक्षात्कार कराया। उपरोक्त कहानियों के माध्यम से समाज और जीवन की नैतिक शिक्षा का साक्षात्कार होता है। इस लेख के बारे में आपके सुझाव और विचार कृपया कमेंट बॉक्स में लिखें।
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